सर्दियों की कठिन लंबी रातों में वे
अपनी गाथाओं से निकल पेड़ के पास जाती हैं
गाने लगती हैं शायद पेड़ का मन बहलाने के लिए
शायद खालीपन और सन्नाटे को भरने
अँधेरे पानी में घुसने से पहले उतार देती हैं परिधान
पानी से आती नहीं छपाक छपाक आवाजें
पानी से निेकल वे कई तरह की क्रियाएँ करती हैं
जैसे कोई अनुष्ठान कर रही हों मुक्ति के लिए
वे जो कुछ कहतीं उसे मौलिक नहीं माना जाता था
पकाना धोना और साफ सूफ करना
कई तरह के टोने टोटके, सालों साल
अपने पुरुषों के लिए धारण करती सर्वोत्तम श्रृंगार
कोई फायदा नहीं दिखता
जो कुछ करती दिखती हैं
किसी और चीज का प्रतीक हो शायद
अनुभवों में अनेक अर्थ हों
जिनकी परतें खोल पाना सहज न हो
चीजों को बरतने और करने का उनका केवल एक ही तरीका नहीं था
लेकिन इससे इस बात का निष्कर्ष निकालना सही न होगा कि
वे विचारों की बहुलता को बढ़ावा देने वाले समाज की उपज हैं